बाह्य अंग meaning in Hindi
[ baahey anega ] sound:
बाह्य अंग sentence in Hindi
Meaning
संज्ञा- किसी जीव के शरीर का बाहरी भाग जो नग्न आँखों से दिखाई देता है:"हाथ एक बाह्य अंग है"
synonyms:बहिरंग, बाहरी अंग, बाह्य शारीरिक भाग, बाहरी शारीरिक भाग, बाह्य शारीरिक अवयव - बाहरी अंग:"हाथ, कान आदि बहिरंग हैं"
synonyms:बहिरंग, बाहरी अंग
Examples
More: Next- जो हिन्दू-समाज का बाह्य अंग बन
- आकाश हमारे इर्दगिर्द फैली प्रकृति का ही बाह्य अंग है।
- साँपों में कोई भी बाह्य अंग नहीं दिखाई देते हैं।
- कुछ साँपों में कुछ बाह्य अंग भी दिखाई देते हैं ; लेकिन ये अंग पूर्व के अंगों के अवशेष मात्र हैं।
- बाह्य अंग साधनपाद में वर्णित है , उनका विभूति स्तर से साक्षात् सम्बन्ध नहीं है - वे केवल बाह्य साधन हैं ॥
- इनमें पाँच योग के बाह्य अंग हैं बाकी तीन अन्तरग ( योगभ्यास 3 / 1 ) ये तीन हैं धारण , ध्यान , समाधि।
- वास्तव में प्रायद्वीपीय भारत के पठार का ही एक बाह्य अंग है , जो नवादा, गया, औरंगाबाद, रोहतास, कैमूर और बांका जिला के दक्षिण भाग में फैला हुआ है ।
- विराट के दो भाग हैं- एक है अन्ततः चैतन्य और दूसरा है बाह्य अंग , बाह्य अंग के समस्त अवयव अपनी- अपनी कार्य दृष्टि से स्वतंत्र सत्ता रखते हैं कर्तव्य भी उनकी उपयोगिता की दृष्टि से प्रत्येक के भिन्न- भिन्न है , लेकिन ये सब हैं उस विराट अंग की रक्षा के लिए , उस अन्तः चैतन्य को बनाये रखने के लिए इस प्रकार अलग होकर और अलग कर्मों में प्रवृत्त होते हुए भी जिस एक चैतन्य के लिए उनकी गति हो रही है , वही हिन्दू संस्कृति का मूलाधार है ।।
- विराट के दो भाग हैं- एक है अन्ततः चैतन्य और दूसरा है बाह्य अंग , बाह्य अंग के समस्त अवयव अपनी- अपनी कार्य दृष्टि से स्वतंत्र सत्ता रखते हैं कर्तव्य भी उनकी उपयोगिता की दृष्टि से प्रत्येक के भिन्न- भिन्न है , लेकिन ये सब हैं उस विराट अंग की रक्षा के लिए , उस अन्तः चैतन्य को बनाये रखने के लिए इस प्रकार अलग होकर और अलग कर्मों में प्रवृत्त होते हुए भी जिस एक चैतन्य के लिए उनकी गति हो रही है , वही हिन्दू संस्कृति का मूलाधार है ।।
- विराट के दो भाग हैं- एक है अन्ततः चैतन्य और दूसरा है बाह्य अंग , बाह्य अंग के समस्त अवयव अपनी- अपनी कार्य दृष्टि से स्वतंत्र सत्ता रखते हैं कर्तव्य भी उनकी उपयोगिता की दृष्टि से प्रत्येक के भिन्न- भिन्न है , लेकिन ये सब हैं उस विराट अंग की रक्षा के लिए , उस अन्तः चैतन्य को बनाये रखने के लिए इस प्रकार अलग होकर और अलग कर्मों में प्रवृत्त होते हुए भी जिस एक चैतन्य के लिए उनकी गति हो रही है , वही हिन्दू संस्कृति का मूलाधार है ।।